दर्शन आरती - श्रीगोविन्द - स्तोत्रम्
दर्शन आरती - श्रीगोविन्द - स्तोत्रम्
वेणु क्वणन्तम् अरविन्द - दलायताक्षम् बर्हावतंसम् असिताम्बुद - सुन्दरांतम् ।
कन्दर्प - कोटि - कमनीय – विशेष - शोभम् गोविन्दमादिपुरुषं तमहं भजामि ।1।
जो वेणु बजाने में दक्ष हैं , कमल की पंखुड़ियों जैसे जिनके प्रफुल्ल नेत्र हैं , जिनका मस्तक मोरपंख से आभूषित है , जिनके अंग नीले बादलों जैसे सुंदर हैं और जिनकी विशेष शोभा करोड़ों कामदेवों को भी लुभाती है , उन आदिपुरुष भगवान् गोविन्द का मैं भजन करता हूँ |1|
अंगानि यस्य सकलेन्द्रिय - वृत्तिमन्ति पशयन्ति पान्ति कलयन्ति चिरं जगन्ति ।
आनन्द - चिन्मय - सदुज्जवल - विग्रहस्य गोविन्दमादिपुरुषं तमहं भजामि ।2।
जिनका दिव्य श्रीविग्रह आनन्द , चिन्मयता तथा सत् से पूरित होने के कारण परमोज्ज्वल है , जिनके चिन्मय शरीर का प्रत्येक अंग अन्यान्य सभी इन्द्रियों की पूर्ण - विकसित वृत्तियों से युक्त है , जो चिरकाल से आध्यात्मिक एवं भौतिक दोनों जगतों को देखते, पालन करते तथा प्रकट करते हैं , उन आदिपुरुष भगवान् गोविन्द का मैं भजन करता हूँ ।2।
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