श्री गुरुचरण - पद्य , केवल – भकति – सद्य बन्दो मुइ सावधान मते ।
याँहार प्रसादे भाई , ए भव तरिया याइ , कृष्ण - प्राप्ति हय याहा हते || 1 ||
हे मेरे भाई ! गुरुदेव के चरणकमल ही शुद्ध भक्ति के एकमात्र धाम हैं । मैं उनके चरणकमलों में अत्यन्त सतर्कता एवं ध्यानपूर्वक नतमस्तक होता हूँ । उनकी कृपा से हम भौतिक महासागर को पार कर सकते हैं तथा कृष्ण को प्राप्त कर सकते हैं । || 1 ||
गुरु - मुख - पद्य - वाक्य , चित्तेते करिया ऐक्य , आर ना करिह मने आशा ।
श्री गुरु - चरणे रति , एइ से उत्तम - गति , ये प्रसादे पूरे सर्व आशा || 2 ||
उनके मुखकमल से निकले हुए शब्दों को अपने हृदय में पूर्णतया समा लो और इसके अलावा अन्य किसी वस्तु की इच्छा न करो । गुरु के के चरणकमलों में अनुराग आध्यात्मिक प्रगति का सर्वश्रेष्ठ साधन हैं उनकी कृपा से आध्यात्मिक सिद्धि के समस्त मनोरथ पूर्ण होते हैं । ।। 2 ।।
चक्षु - दान दिलो येइ , जन्मे जन्मे प्रभु सेइ , दिव्य - ज्ञान हृदे प्रकाशित ।
प्रम - भक्ति याहा होइते , अविद्या विनाश याते , वेदे गाय याँहार चरित || 3 ||
जिन्होंने मेरी बन्द आँखों को दिव्य दृष्टि दी हैं वे जन्म - जन्मान्तरों तक मेरे प्रभु हैं । उनकी कृपा से , हृदय में दिव्य ज्ञान प्रकट होता है । जिससे प्रेमा भक्ति का वरदान मिलता है । और अविद्या का नाश होता है । वैदिक शास्त्र उनके चरित्र का गान करते हैं || 3 ||
श्रीगुरु करुणा - सिन्धु अधम जनार बन्धु , लोकनाथ लोकेर जीवन ।
हा हा प्रभु कर दया , दहो मोरे पद - छाया , एबे यश घुषुक त्रिभुवन ।। 4 ।।
हे गुरुदेव ! करुणासिन्धु तथा पतितात्माओं के मित्र ! आप प्रत्येक के गुरु एवं सभी लोगों के जीवन हैं । हे गुरुदेव ! मुझ पर दया कीजिए तथा मुझे अपने चरणों की छाया दीजिए। आपका यश तीनों लोकों में घोषित हो || 4 ||