नमो नमः तुलसी ! कृष्णप्रेयसी ।
राधा - कृष्ण - सेवा पाबो एइ अभिलाषी ।। 1 ।।
भगवान् श्रीकृष्ण की प्रियतमा हे तुलसी देवी ! मैं आपको बारम्बार प्रणाम करता हूँ । मेरी इच्छा है कि मैं श्री राधा – कृष्ण की सेवा प्राप्त करूँ।
जे तोमर शरण लय , तार वाञछा पूर्ण हय ।
कृपा करि ' करो तारे वृन्दावन - वासी || 2 ||
जो कोई भी आपकी शरण लेता है उसकी कामनाएँ पूर्ण होती हैं। उस पर आप कृपा करके उसे वृन्दावन वासी बना देती हैं।
मोर एइ अभिलाष , विलास कुंजे दिओ वास ।
नयने हेरिब सदा जुगल - रुप - राशि || 3 ||
मेरी यही अभिलाषा है कि आप मुझे भी वृन्दावन - धाम के कुंजों में निवास प्रदान करें । इस तरह मैं श्रीराधा - कृष्ण की सुन्दर लीलाओं का सदैव अपने नेत्रों से दर्शन कर सकूँगा ।
एइ निवेदन घर , सखीर अनुगत करो ।
सेवा अधिकार दिये करो निज दासी || 4 ||
मेरा आपसे निवेदन है कि मुझे ब्रजगोपियों की अनुचरी बना दीजिए तथा भक्ति का अधिकार देकर मुझे अपनी दासी बना लीजिये ।
दीन कृष्णदासे कय , एइ येन मोर हय ।
श्रीराधा - गोविन्द - प्रेमे सदा येन भासि ।। 5 ।।
कृष्ण का यह अति दीन दास आपसे प्रार्थना करता है , "मैं सदा सर्वदा श्री श्रीराधा - गोविन्द के प्रेम में रत रहूँ |”