श्री वृन्दावनचंद्र दास (विवेक कौशिक)

कृष्ण कृपापात्र श्री वृन्दावनचंद्र दास राज कर्मयोग के सिद्धांतों के ज्ञान से परिपूर्ण एक सुप्रतिष्ठित वक्ता हैं । उनके राज कर्मयोग पर जीवन परिवर्तक व्याख्यान ने लाखों व्यक्तियों को पवित्र, शांतिपूर्ण, तनावमुक्त, सफल तथा उत्कृष्ट जीवन जीने हेतु सहायता करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी है ।

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उन्हें क्या अद्वितीय बनाता है ?

सम्पूर्ण विश्व में उनके श्रोता यह दावा करते हैं कि श्री वृन्दावनचन्द्र दास जटिलतम यौगिक सिद्धांतों को सरलतम और तर्कपूर्ण रूप से हमारे दैनिक जीवन के उदाहरणों सहित समझाने में निपुण हैं । इस प्रकार वे इस राज कर्मयोग के सिद्धांतों के विषय तथा अभ्यास से बड़ी ही आसानी से जुड़ पाते हैं । वे एक निपुण और स्पष्ट वक्ता हैं, और उनके व्याख्यान परस्पर संवादात्मक होते हैं । उनके शंका समाधान के सत्र अत्यंत ही जीवंत तथा शिक्षाप्रद होते हैं ।

संगोष्ठी तथा व्याख्यान

श्री वृंदावनचंद्र दास ने विश्व भर से बहुमुखी दर्शकों को संगोष्ठियों और व्याख्यानों का लाभ प्रदान किया है । इनमें से कुछ विषय इस प्रकार हैं:

  • राज कर्मयोग के माध्यम से व्यक्तित्व की पूर्णता
  • योग के सिद्धांत
  • पुनर्जन्म
  • तथ्य या मिथ्या
  • आध्यात्मिक योग – आज के जीवन में प्रासंगिकता
  • मृत्यु की मृत्यु
  • योग अथवा भोग
  • कर्म का सिद्धांत – सफलता तथा असफलता के नियम
  • जीवन प्रबंधन हेतु राज कर्मयोग
  • आध्यात्मिक योग के माध्यम से आत्म सशक्तिकरण

वे राज कर्मयोग पर आधारभूत, मध्यम तथा गूढ़ पाठ्यक्रम भी आयोजित करते हैं । उनके सभी व्याख्यानों के अंत में प्रश्नोत्तरी सत्र होता है । वे ग्राह्य संगोष्ठियाँ तथा व्याख्यान आयोजित करते हैं ।

पारिवारिक पृष्ठभूमि

कृष्ण कृपापात्र श्री वृन्दावनचन्द्र दास आध्यात्मिकता से ओतप्रोत एक ब्राह्मण परिवार से हैं । उनके पिताजी भारतीय सेना में अधिकारी थे । अपना होटल मैनेजमेंट पूर्ण करने के पश्चात्, वे एक पाँच सितारा होटल के महाप्रबंधक (General Manager) बन गए । यह कार्यकाल, उन्हें कॉर्पोरेट जगत में आने वाली चुनौतियों से परिचित होने में सहायक सिद्ध हुआ ।

आध्यात्मिक वक्ता

कम आयु में ही वे आध्यात्मिक यौगिक सत्य के खोजी बन गए ।  इस इच्छा  के चलते उन्हें अनेक योग की पुस्तकों के अध्ययन का अवसर प्राप्त हुआ, जिनमें श्रीमदभगवद्गीता के 48 अनुवाद भी सम्मिलित थे । वे योग के कई शिक्षकों से भी मिले, किन्तु वे सब उनकी सत्य के प्रति उठ रही पिपासा (प्यास) को शांत करने में असक्षम रहे । यह जिज्ञासा केवल तभी शांत हुई जब उन्होंने ए.सी. भक्तिवेदांत स्वामी ठाकुर श्रील प्रभुपाद द्वारा प्रदत्त गौडीय वैष्णव धर्मशास्त्रों का गहन अध्ययन किया तथा उन्हें समझा । वर्ष 1982 में, श्री वृन्दावनचन्द्र दास दीक्षित हुए तथा ए.सी. भक्तिवेदांत स्वामी ठाकुर श्रील प्रभुपाद के औपचारिक शिष्य बने । वैदिक ज्ञान के गहन अध्ययन के पश्चात्, वे राज कर्मयोग के आचार्य बन गए ।

मानवता के संरक्षक

डॉक्टर ऑर्नोल्ड टोयनबी (प्रसिद्ध ब्रिटिश इतिहासकार)
“यह पहले से ही स्पष्ट है कि जिस अध्याय का आरंभ पाश्चात्य होता है उसका अंत ‘भारतीय’ ही होगा, यदि यह इस मानव समाज की दौड़ में स्वतः विनाश को नहीं प्राप्त होना चाहता|” इतिहास के इस महाभयंकर काल में, मानव समाज की रक्षा का केवल और केवल एक ही समाधान है और वह है ‘भारतीय समाधान’ |”

श्री वृन्दावनचन्द्र दास इस कथन की पुष्टि करते हैं । वे समझाते हैं कि “भारतीय समाधान”, राज कर्मयोग के शाश्वत, वर्षों पुराने दर्शन पर आधारित है । यह दर्शन केवल किसी विशेष राष्ट्र, जाति, सम्प्रदाय, मान्यता, लिंग अथवा धर्म के लिए नहीं है अपितु यह सम्पूर्ण मानवजाति के लिए है । आइये सभी मानव समाज के संरक्षण के लिए एकजुट हों ।

राज कर्मयोग के गुरु

उनके निर्देशन में प्रशिक्षित विद्यार्थी राज कर्मयोग के अति उत्कृष्ट शिक्षक बने हैं तथा GIVE के उद्देश्यों को पूर्ण रूप आगे ले जाने में सक्रिय रूप से जुड़े हुए हैं । वे विश्वभर के विभिन्न वर्गों के हजारों लोगों के गुरु हैं | उन्हें मोरिशियस के राष्ट्रपति श्री कैलास पुर्र्याग द्वारा राज कर्मयोग के सिद्धांतों को प्रशासन में लागु करने के लिए चर्चा करने हेतु आमंत्रित किया गया था ।

उनकी जीवन संगिनी / धर्मपत्नी

श्री वृन्दावनचन्द्र दास विवाहित हैं । उनकी पत्नी श्रीमती विष्णुप्रिया "एल. एल. एम." उपाधि प्राप्त हैं । उन्होंने अपने ऐश्वर्यपूर्ण भौतिक जीवन का त्याग कर यौगिक ज्ञान के प्रचार-प्रसार में योगदान देने हेतु अपना सम्पूर्ण जीवन न्यौछावर कर दिया है। दोनों ही इस महान कार्य में गहनता से संलग्न हैं । वे भी राज कर्मयोग के सिद्धांतों के पालन करती हैं तथा ए.सी. भक्तिवेदांत स्वामी ठाकुर श्रील प्रभुपाद की दीक्षित शिष्या हैं ।

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