दीक्षा प्रणाली
जीवन के चरम् लक्ष्य अर्थात् भगवान श्रीकृष्ण के प्रति अनन्य प्रेम तक पहुंचने की प्रक्रिया को निम्न चरणों में विभाजित किया गया है:
आदौ श्रद्धा ततः साधुसंगोऽथ भजनक्रिया।
ततोऽनर्थनिवृत्तिः स्यात्तत्तो निष्ठा रुचिस्ततः।।
अथासक्तिस्ततो भावस्ततः प्रेमाऽभ्युदञ्चति।
साधकानामयं प्रेम्णः प्रादुर्भावे भवेत् क्रमः।।
- श्रद्धा - प्रारंभ में थोड़ी आस्था होनी चाहिए। यह आस्था किसी के पूर्व जन्म के परिणामस्वरूप हो सकती है या कोई व्यक्ति अधिक जानकारी के लिए श्रीकृष्ण भक्त से मिलकर थोड़ी और आस्था एवं विश्वास विकसित करता है।
- साधु संग - फिर इस आस्था के कारण, और अधिक जानने के लिए भक्तों के साथ संगति करने में रुचि हो जाती है। भगवान श्रीकृष्ण, उनके शुद्ध भक्तों और भक्तिमय सेवा की महिमा के बारे में भक्तों से श्रवण करने पर आध्यात्मिकता के पथ पर गंभीरता से बढ़ने की इच्छा होती है।
- भजन क्रिया - जब कोई श्री राधाकृष्ण की भक्ति के मार्ग पर गंभीरता से चलने के लिए तत्पर होता है तो वह दीक्षा के माध्यम से एक प्रामाणिक आध्यात्मिक गुरु (दीक्षा गुरु) को स्वीकार करता है तथा उन्हीं के आदेशों के अंतर्गत भक्तिमय सेवा के नियम और सिद्धांतों का पालन करके भक्ति के मार्ग पर चलता है। भजन क्रिया वह चरण है जहाँ से सच्ची या वास्तविक आध्यात्मिक यात्रा या आध्यात्मिक जीवन का प्रारंभ होता है। गुरु के निर्देश आध्यात्मिक इच्छा रखने वाले शिष्य के पूरे जीवन में हमेशा मार्गदर्शक बने रहने चाहिए।
शिष्य के जीवन में जिस क्षण गुरु के आध्यात्मिक निर्देशों का आश्रय छूट जाता है, दीक्षा खंडित हो जाती है।
- अनर्थ निवृत्ति - गुरु के निर्देशों का दृढ़ता पूर्वक पालन करने से उन सभी अवांछित आदतों से मुक्ति मिल जाती है जो आध्यात्मिक जीवन में आगे बढ़ने में बाधक हैं।
- निष्ठा - इन बाधाओं के समाप्त होने पर, व्यक्ति दृढ़ता से स्थिर हो जाता है, इसे भक्तिमय सेवा में परिपक्व या अटूट श्रद्धा-विश्वास के रूप में भी जाना जाता है।
- रुचि - इसके बाद, व्यक्ति भक्तिमय सेवा के लिए अपने हृदय में एक स्वाद विकसित करता है।
- आसक्ति - यह स्वाद प्रेममयी भक्तिमय सेवा के प्रति लगाव उत्पन्न करता है। भक्ति के नियम एवं सिद्धांतों के अनुसार यह भक्तिमय सेवा करने के लिए साधना भक्ति की विधि है ।
- भाव - धीरे-धीरे आसक्ति और भावनाएं तीव्र होती जाती हैं, जिसे ‘भाव’ कहा जाता है।
- प्रेम - अंत में प्रेम जाग्रत होता है (परिपक्व भाव या सघन भाव) -‘श्रीकृष्ण प्रेम’ इसी का नाम है।
दीक्षा क्या है ?
दिव्य-ज्ञान अकनपायत इतिदेवना दीक्षा शब्द दो भिन्न शब्दों के सम्मिश्रण से बनता है ‘दी’ तथा ‘क्षा’। इसमें ‘दी’ का अर्थ यहाँ दिव्यज्ञान या पारमार्थिक ज्ञान है जबकि ‘क्ष’ का अर्थ है आध्यात्मिक उन्नति के मार्ग में आने वाले अवरोधों को क्षय (नष्ट) करना।
संयुक्त रूप से, "दीक्षा" शब्द का पूर्ण अर्थ है - वह आध्यात्मिक या दिव्य ज्ञान जिसे लेने से सभी बाधाएं नष्ट हो जाती हैं, जो मानव जीवन के वास्तविक उद्देश्य को पूरा करने में बाधक हैं, यह वास्तविक उद्देश्य है. परम परम सत्य भगवान श्रीकृष्ण के साथ आत्मा के शाश्वत संबंधों को फिर से स्थापित करना। भगवद् गीता में इस तथ्य की पुष्टि अध्याय 9 श्लोक-1 में भी इस प्रकार हुई हैः
इदं तु ते गुह्यतमं प्रवक्ष्याम्यनसूयवे ।
ज्ञानं विज्ञानसहितं यज्ज्ञात्वा मोक्ष्यसेऽशुभात् ॥१॥
अनुवाद
श्रीभगवान् ने कहा-हे अर्जुन! चूँकि तुम मुझसे कभी ईर्ष्या नहीं करते, इसीलिए मैं तुम्हें यह परम गुह्यज्ञान तथा अनुभूति बतलाऊँगा, जिसे जानकर तुम संसार के सारे क्लेशों से मुक्त हो जाओगे।
यहां भगवान श्रीकृष्ण स्पष्ट रूप से कह रहे हैं कि जो इस आध्यात्मिक ज्ञान को जानता है और उसे जीवन में लगाता है, उसे सभी दुखों से छुटकारा मिल जाएगा। श्रीकृष्ण भक्ति के मार्ग पर एक भक्त के लिए दुःख यह है कि वह भगवान श्रीकृष्ण के प्रति शुद्ध प्रेम को विकसित नही कर पा रहा है।
दीक्षा का महत्व
भक्तिरसामृत सिंधु में श्रीपाद रूप गोस्वामी ने कहते हैं कि भक्ति के 64 अंगों (भागोंं) में पहले चार या आरंभिक 4 भाग हैंः
गुरुपदाश्रयस्तस्मात् कृष्णदीक्षादि शिक्षणम्।
विश्रम्भेणा गुरोः सेवा साधु वर्त्मानुवर्तन्ते।।
- गुरु का आश्रय लेना
- फिर दीक्षा लेकर श्रीकृष्ण भक्ति आरंभ करना
- गुरु से ज्ञान प्राप्त करना
- गुरु के द्वारा प्रदत्त सेवा (निर्देशों) का सम्मान के साथ पालन करना
यही कारण है कि दीक्षा लेना कठिन हो जाता है। लेकिन दीक्षा स्वीकार करने से पहले, आपको विशिष्ट चरणों से निकलकर दीक्षा की पूरी तैयारी करनी होगी। जैसे जब आप अपनी स्नातक की उपाधि प्राप्त करते हैं, तो आपको पहले स्नातक के निचले पायदान (प्रथम वर्ष, द्वितीय वर्ष, आदि) को पूर्ण करना होता है । याद रखें, दीक्षा एक स्नातक बनने की तरह है जिसके बाद आप अपने जीवन में ज्ञान का उपयोग करना आरंभ करते हैं। दीक्षा श्रीकृष्ण भक्ति की शुरुआत या भक्ति का अंत नहीं है। दीक्षा लेने की प्रक्रिया के बाद ही श्रीकृष्ण भक्ति का अभ्यास प्रारंभ होता है।
एक आध्यात्मिक जिज्ञासु या साधक को दीक्षा प्राप्त करने हेतु दीक्षा प्रणाली के निम्न चरणों से गुजरना होता है -
- प्रथम चरण- कृष्ण आश्रय
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द्वितीय चरण - प्रभुपादानुगा
- प्रथम स्तर
- द्वितीय स्तर
- तृतीय स्तर
- तृतीय चरण- हरिनाम दीक्षा
हम आपको एक प्रारूप प्रदान कर रहे हैं जिसे भर लेने पर आप जान सकते हैं कि आप वर्तमान में किस स्तर पर हैं तथा साथ ही अपनी दीक्षा की यात्रा प्रारंभ कर सकते हैं। निम्नलिखित बिन्दुओं को सावधानीपूर्वक पढ़ने के बाद ही उस प्रारूप को भरें:
प्रथम चरण
- व्याख्यान सुनने संबन्धित आवश्यकता - आपने भगवद गीता पर आधारित श्री वृन्दावनचन्द्र दास जी द्वारा दिया हुआ 14 घण्टे का सेमिनार सुना है, और आप GIVE रविवारीय कक्षाओं को नियमित रूप से सुनते हैं ।
- यह पूर्ण विश्वास होना कि भगवान श्रीकृष्ण ही सर्वशक्तिमान हैं और शेष सभी उनके द्वारा नियंत्रित हैं।
- भगवान श्रीकृष्ण के सत्-चित-आनन्द विग्रह में विश्वास ।
- जप - प्रतिदिन कम से कम 1 माला (हरे कृष्ण महामंत्र का उच्चारण 108 बार) नीम की माला पर ही जप करें। यदि नीम की माला नहीं है नीम की माला हमारी वेबसाइट से प्राप्त करें.
- भक्ति के लिए निर्धारित चार में से एक या उससे अधिक नियमों/सिद्धांतों का पालन नहीं कर रहें हैं।
द्वितीय चरण - प्रभुपादानुगा
श्रीकृष्ण आश्रय के बाद अगला चरण प्रभुपादानुगा बनना है। इस चरण के बाद से कोई व्यक्ति भगवान श्रीराधाकृष्ण तथा श्री निताई गौरांग का शुद्ध भक्त बनकर श्रील प्रभुपाद से औपचारिक दीक्षा लेने की यात्रा का प्रारंभ करता है।
आप इन चरणों को अपने जीवन में अपना चुके हैं या आज के बाद से इन को अपनाने का संकल्प कर रहे हैं.
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प्रभुपादानुगा . प्रथम स्तर
- स्वतंत्रता के चार नियामक सिद्धांतों का आपके द्वारा पालन किया जा रहा है या अब से पालन करने हेतु संकल्प ले रहे हैं ।
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स्वतंत्रता के लिए चार नियामक सिद्धांत
नशा वर्जित |
किसी भी प्रकार का कैफीन उत्पाद जैसे कि चाय, काॅफी, चाॅकलेट, शराब, ड्रग्स, चरस इत्यादि। धूम्रपान, तंबाकू, गुटका वर्जित। |
आहार संबंधी नियम |
किसी भी प्रकार रजोगुणी-तमोगुणी आहार नहीं जैसे कि मांस, मछली, अंडा, मषरूम, मसूर की दाल, प्याज, लहसुन, भोजन से 3 घण्टे पूर्व पकाया कोई भी खाद्य पदार्थ। |
अवैध संबंध नहीं |
विवाह के बाहर कोई संबंध नहीं। संभोग केवल संतान उत्पत्ति के लिए। |
जुआ या मनोधर्म नहीं |
भक्त के द्वारा किसी भी प्रकार का जुआ नहीं खेला जाना चाहिए। इसमें शेयर बाजार में कारोबार करना, ताष खेलना, कोई मनोधर्म नहीं उदाहरणार्थ आध्यात्मिक विषयों में स्वयं की धारणाएं। |
- जप - प्रतिदिन कम से कम 4 माला (हरे कृष्ण महामंत्र का उच्चारण 108 बार) नीम की माला पर ही जप करें। यदि नीम की माला नहीं है . नीम की माला हमारी वेबसाइट से प्राप्त करें
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व्याख्यान सुनने संबन्धित आवश्यकता
- आपने भवद्गीता पर आधारित श्री वृन्दावनचन्द्र जी द्वारा दिया हुआ 14 घण्टे का सेमिनार कम से कम 2 बार सुना है ,
- इशोपनिषद सेमिनार सुना हो
- प्रति सप्ताह कम से कम दो घंटे गुरुजी श्री वृन्दावनचन्द्र दास जी का लाइव या रिकार्डेड व्याख्यान सुनते हों।
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अध्ययन
- भगवद्गीता की भूमिका का अध्ययन प्रतिदिन 15-20 मिनट देकर कम से 6 बार पूर्ण किया हो।
- भगवद्गीता की भूमिका का अध्ययन कम से 6 बार पूर्ण करने के बाद प्रतिदिन एक श्लोक का अनुवाद पढ़ना प्रारंभ कर दिया हो।
- भगवद्गीता के कम-से-कम एक श्लोक को प्रतिदिन तात्पर्य सहित 15 मिनट या उससे अधिक पढ़ना।
- श्रील प्रभुपाद की छोटी पुस्तकों का प्रतिदिन कम से कम 15 मिनट या उससे अधिक अध्ययन करते हों ।
- एकादशी तथा हरिवासर दिवसों पर उपवास रखना चाहिए।
- गले में दो घेरों वाली तुलसी की कंठी धारण करनी चाहिए।
- श्रील प्रभुपाद प्रणति व पंचतत्व मंत्र कंठस्थ होने चाहिए।
- श्रीकृष्ण को भोग लगाने की विधि ज्ञात होनी चाहिए।.
- श्रीकृष्णप्रसादम् को किस प्रकार ग्रहण करना चाहिए?
- GIVE के वार्षिक उत्सवों में भाग लेना - एक वर्ष में कोई 1 या उससे अधिक उत्सवों में भाग लिया हो ।
- व्यक्तिगत मार्गदर्शन - आप एक भक्त के द्वारा दिशानिर्देश प्राप्त करेंगे।
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प्रभुपादानुगा. द्वितीय स्तर
प्रभुपादानुगा प्रथम स्तर में वर्णित सभी बिन्दुओं की योग्यताओं को आप पूर्ण कर चुके हों ए इसके साथ ही के साथ निम्नलिखित योग्यताएं भी आवश्यक हैं.
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श्रवण संबंधी योग्यताएं-
- श्रील प्रभुपाद या गुरूजी श्री वृन्दावनचन्द्रदास जी के लाइव या रिकार्डेड सत्र को प्रति सप्ताह कम से कम 4 या अधिक घण्टों तक सुनते हों ।
- जप- प्रतिदिन कम से कम 8-12 माला (हरे कृष्ण महामंत्र का उच्चारण 108 बार) नीम की माला पर ही जप करें। यदि नीम की माला नहीं है तो नीम की माला हमारी वेबसाइट से प्राप्त करें
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अध्ययन संबंधी आवश्यकताएँ -
- भगवद्गीता यथारूप का प्रतिदिन कम से कम 30 मिनट या उससे अधिक अध्ययन करना।
- श्रील प्रभुपाद की छोटी पुस्तकों का प्रतिदिन कम से कम 20 मिनट या उससे अधिक अध्ययन करते हों ।
- एकादशी तथा हरिवासर दिवसों पर उपवास रखना।
- बारह तिलकों से नित्य अपने शरीर को सजाना; तिलक कैसे लगाएं
- घर में या मंदिरों में या GIVE द्वारा संचालित गीतालयों पर मंगला आरती करना।
- सेवा संकल्प - सप्ताह में कम से कम 2 घण्टे या उससे अधिक।
- GIVE द्वारा प्रायोजित वार्षिक उत्सवों में भाग लेना - एक वर्ष में कोई 1 या उससे अधिक उत्सवों पर।
- अन्य गतिविधियों के लिए संकल्प - हर सप्ताह 4 या उससे अधिक व्यक्तियों को 14 घण्टे के कोर्स को सुनने और कम से कम 1 माला करने के लिए प्रेरित करना।
- व्यक्तिगत मार्गदर्शन - आप एक भक्त के द्वारा दिशानिर्देश प्राप्त करेंगे।
- GIVE में पालन की जाने वाली शिक्षा तथा दीक्षा गुरु प्रणाली - GIVE में पालन की जाने वाली दीक्षा प्रणाली पर पूर्ण श्रद्धा व विश्वास होना चाहिए। श्रील प्रभुपाद के निर्देशानुसार, श्रील प्रभुपाद ही GIVEमें सभी दीक्षित शिष्यों के दीक्षा गुरू हैं और श्री वृन्दावनचन्द्र दास जी शिक्षा गुरू हैं।
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प्रभुपादानुगा तृतीय स्तर
प्रभुपादानुगा द्वितीय स्तर में वर्णित सभी बिन्दुओं की योग्यताओं को आप पूर्ण कर चुके हों ए इसके साथ ही के साथ निम्नलिखित योग्यताएं भी आवश्यक हैं.
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श्रवण संबंधी योग्यताएं-
- वैष्णव सदाचार के प्रवचनों का श्रवण किया हो।
- श्रील प्रभुपाद या गुरूजी श्री वृन्दावनचन्द्रदास जी के लाइव या रिकार्डेड सत्र को प्रति सप्ताह कम से कम 4 या अधिक घण्टों तक सुनना ।
- जप - प्रतिदिन कम से कम 8.12 माला (हरे कृष्ण महामंत्र का उच्चारण 108 बार) नीम की माला पर ही जप करें। यदि नीम की माला नहीं है . नीम की माला हमारी वेबसाइट से प्राप्त करें
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अध्ययन-
- भगवद्गीता यथारूप का प्रतिदिन कम से कम 30 मिनट या उससे अधिक अध्ययन करना।
- श्रील प्रभुपाद की छोटी पुस्तकों का प्रतिदिन कम से कम 20 मिनट या उससे अधिक अध्ययन करना चाहिए।
- सभी आरतियों को हृदयंगम कर कंठस्थ करना। और घर में या मंदिरों में या GIVEद्वारा संचालित गीतालयों पर मंगला आरती करना।
- सेवा संकल्प - सप्ताह में कम से कम 3 घण्टे या उससे अधिक।
- वार्षिक उत्सवों में भाग लेना - एक वर्ष में कोई 1 या उससे अधिक उत्सवों पर।
- अन्य गतिविधियों के लिए संकल्प - हर सप्ताह 4 या उससे अधिक व्यक्तियों को 14 घण्टे के कोर्स को सुनने और कम से कम 1 माला करने के लिए प्रेरित करना।
- व्यक्तिगत मार्गदर्शन - आप एक भक्त के द्वारा दिशानिर्देश प्राप्त करेंगे।
- GIVE में पालन की जाने वाली शिक्षा तथा दीक्षा गुरु प्रणाली - GIVE में पालन की जाने वाली दीक्षा प्रणाली पर पूर्ण श्रद्धा व विश्वास होना चाहिए। श्रील प्रभुपाद के निर्देशानुसार, श्रील प्रभुपाद ही GIVEमें सभी दीक्षित शिष्यों के दीक्षा गुरू हैं और श्री वृन्दावनचन्द्र दास जी शिक्षा गुरू हैं।
तृतीय चरण - प्रभुपाद दीक्षित शिष्य (हरिनाम दीक्षा)
तृतीय चरण प्रभुपादानुगा में सूचीबद्ध सभी आवश्यकओं का कम से कम 12 महीने तक सावधानी पूर्वक पालन करना है। इसके पश्चात् दीक्षा मण्डल भलीभांति निरीक्षण करेगा तथा उन चयनित पात्रताधारी या योग्य भक्तों के नाम की सूची श्री वृन्दावनचंद्र दास जी को अंतिम चयन के निर्णय हेतु प्रेषित करेगा।
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श्रवण संबंधी योग्यताएं-
- श्रील प्रभुपाद या गुरूजी श्री वृन्दावनचन्द्रदास जी के लाइव या रिकाॅर्डेड सत्र को प्र्रति सप्ताह कम से कम 4 या अधिक घण्टों तक सुनना ।
- जप-न्यूनतम 16 माला प्रतिदिन। (तुलसी की माला पर जप करें। यह तुलसी की माला दीक्षा के समय प्रदान की जाएगी।)
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अध्ययन-
- भगवद्गीता यथारूप का प्रतिदिन कम से कम 20 मिनट या उससे अधिक अध्ययन करना।
- श्रील प्रभुपाद की छोटी पुस्तकों का प्रतिदिन कम से कम 15 मिनट या उससे अधिक अध्ययन करना चाहिए।
- सेवा संकल्प - सप्ताह में कम से कम 2 घण्टे या उससे अधिक।
- वार्षिक उत्सवों में भाग लेना - एक वर्ष में कोई 1 या उससे अधिक उत्सवों पर।
- अन्य गतिविधियों के लिए संकल्प - हर सप्ताह 6 या उससे अधिक व्यक्तियों को 14 घण्टे के कोर्स को सुनने और कम से कम 1 माला करने के लिए प्रेरित करना।
- व्यक्तिगत मार्गदर्शन - आप गुरुजी अथवा एक भक्त के द्वारा मार्गदर्शन प्राप्त करेंगे।
- दीक्षा केवल परीक्षा उत्तीर्ण करने के पश्चात् ही प्रदान की जाएगी।
- GIVE में पालन की जाने वाली शिक्षा तथा दीक्षा गुरु प्रणाली- GIVEमें पालन की जाने वाली दीक्षा प्रणाली पर पूर्ण श्रद्धा व विश्वास होना चाहिए। श्रील प्रभुपाद के निर्देशानुसार, श्रील प्रभुपाद ही GIVEमें सभी दीक्षित शिष्यों के दीक्षा गुरू हैं और श्री वृन्दावनचन्द्र दास जी शिक्षा गुरू हैं।