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भगवान
भगवान
अनंत लक्ष्मीयों का मूल स्रोत राधारानी हैं
भगवान श्रीक़ृष्ण को भोग अर्पित करने के बाद पाया हुआ प्रसाद ही सर्वोत्तम भोजन है
अपनी स्वतन्त्रता का उपयोग इस स्वतन्त्रता को भगवान श्री कृष्ण को समर्पित करने में उपयोग करें
परम रचयिता के अस्तित्व को स्वीकार न करना पूर्णतः अवास्तविक, अवैज्ञानिक और तर्कहीन है
भगवान के प्रति हमारा प्रेम उनके द्वारा बनाई गयी रचनाओं में हमारा प्रेम अपने आप उत्पन्न करता है
परम भगवान श्री कृष्ण को बिना शर्त प्रेम करने हेतु हम पूर्ण स्वतंत्र हैं
मनुष्य की सीमित इंद्रियों से असीमित भगवान की अनुभूति नहीं की जा सकती
लोग मंदिर तो जाते हैं लेकिन वे यह नहीं जानते कि भगवान से मांगना क्या चाहिए
भगवान नहीं अपितु भगवत दास बनो
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